मंगलवार, 22 जुलाई 2014

कीटों की मास्टरनियों ने विधार्थियों को पढ़ाया कीट ज्ञान का पाठ

महिला किसान खेत पाठशाला में डेफोडिल्स स्कूल के विधार्थियों  ने ली कीट ज्ञान की तालीम

नरेंद्र कुंडू
जींद। पौधा 24 घंटे में साढ़े चार ग्राम भोजन बनाता है। डेढ़ ग्राम भोजन पौधा अपने नीचे के हिस्से को देता है तथा डेढ़ ग्राम भोजन ऊपरी हिस्से को देता है। बाकि बचा हुआ डेढ़ ग्राम भोजन रिजर्व में रखता है ताकि एमरजैंसी में यह भोजन उसके काम आ सके। भोजन के आवागमन के लिए पौधे में दो नालियां होती हैं। एक नाली से पौधा कच्चा माल जड़ों तक पहुंचाता है और दूसरी नाली से पक्का हुआ माल पौधे के सभी हिस्सों तक पहुंचता है। यह जानकारी कीटों की मास्टरनी सविता तथा मिनी मलिक ने शनिवार को अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा निडाना गांव के खेतों में आयोजित महिला किसान खेत पाठशाला में निडाना गांव स्थित डैफोडिल्स पब्लिक स्कूल के  विधार्थियों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ाते हुए दी। महिला पाठशाला में डैफोडिल्स पब्लिक स्कूल के 8वीं कक्षा के  विधार्थियों ने पढ़ाई के साथ-साथ फसल में मौजूद मांसाहारी तथा शाकाहारी कीटों के बारे में जानकारी हासिल की। 
पाठशाला में कीटों की जानकारी को नोट करते बच्चे।
 पाठशाला में बच्चों को कीटों की पहचान करवाती मास्टर ट्रेनर मिनी मलिक।

मांसाहारी कीट है भिरड़

भिरड़ ग्रुप की मास्टर ट्रेनर सुषमा, संतोष, सुमन, कमल तथा जसबीर कौर ने  विधर्थियों को बताया कि भिरड़ नामक कीट मांसाहारी होती है। यह छता बनाकर उसमें कीट को रोकती है और उसके बाद उसमें अपने अंड़े देती है। इसके बच्चे जिंदा कीट के मांस को खाते हैं। इसलिए भिरड़ कीट को पूरी तरह से मारने की बजाये बेहोश करके अपने छत्ते में रोकती है और फिर भिरड़ के बच्चे उस कीट को खाकर अपना गुजारा करते हैं।

कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं माशाहारी 

आज से पहले उन्हें यह पता नहीं था कि कीट हमारे लिए कितने लाभदायक होते हैं। महिला किसान खेत पाठशाला में आकर उन्हें कीटों के बारे में बहुत अच्छी व ज्ञानवर्धक जानकारी मिली। पाठशाला में महिलाओं ने उन्हें बताया कि ब्रिस्टल बिटल (तेलन) कपास के फूल की केवल पत्तियां व नर पुंकेशर खाकर गुजारा करती है और इस प्रक्रिया के दौरान वह फूल की प्रजनन करने में सहायता करती है। क्योंकि कपास के फूल में एक ही मादा पुंकेशर होता है और नर पुंकेशर काफी ज्यादा होते हैं। इसका मादा पुंकेशर नर पुंकेशर से ऊपर होता है। कपास के फूल का प्राग भारी होने के कारण हवा में नहीं तैर सकता। इसलिए जब ब्रिस्टल बिटल इस फूल की पंखुडिय़ों को खाती है तो उसके शरीर पर सैंकड़ों प्रागकण लग जाते हैं । इस प्रकार यह कीट फूल के प्रजजन में सहायता कर किसान को फायदा पहुंचाता है। वहीं ब्रिस्टल बिटल जमीन में अपने अंड़े देती है और इसके बच्चे मांसाहारी होते हैं, जो शाकाहारी कीटों को खाकर फसल में कुदरती कीटनाशी का काम करते हैं।
अजय मलिक, विद्यार्थी
डेफोडिल्ज पब्लिक स्कूल, निडाना

पौधों को होती है कीटों की जरूरत

पाठशाल में उन्होंने यह जानकारी हासिल की है कि शाकाहारी कीट फसल में क्यों आते हैं और पौधों को उनकी क्या जरूरत पड़ती है। कीटाचार्य महिलाओं ने उन्हें बताया कि इस समय कपास की फसल काफी बड़ी हो चुकी है। इससे कपास के पौधों के नीचे के पत्तों पर ठीक तरह से धूप नहीं पहुंच पा रही है। इससे नीचे के पत्ते पौधे के लिए भोजन नहीं बना पा रहे हैं। इसलिए इस समय कपास के पौधों को शाकाहारी कीटों की जरूरत होती है और पौधे भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर शाकाहारी कीटों को बुलाते हैं। इस समय कपास की फसल में टिड्डे आये हुए हैं। टिड्डे पत्तों के बीच से छेद करते हैं, जिससे पौधे के नीचे के पत्तों पर धूप पहुंचती है और नीचे के पत्ते भी पौधे के लिए भोजन बनाने का काम शुरू कर देते हैं। 
अंकुश, विद्यार्थी
डेफोडिल्स पब्लिक स्कूल, निडाना

नहीं बढ़ रही है सफ़ेद मक्खी की संख्या

पाठशाला में उन्हें यह सीखने को मिला की मांसाहारी कीट किस तरह से शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करते हैं। महिला किसानों ने उन्हें बताया कि तीन सप्ताह पहले कपास की फसल में सफेद मक्खी की औसत प्रति पत्ता 1.6 थी और एक सफेद मक्खी अपने जीवन में 100 से 120 अंड़े देती है। अंड़े से बच्चे निकलने में 5 दिन और बच्चों से प्रौढ़ होने में एक सप्ताह तक का समय लगता है। सफेद मक्खी की अंड़े देने की क्षमता को देखते हुए इस सप्ताह कपास की फसल में सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता 100 के लगभग होनी चाहिए थे लेकिन तीन सप्ताह बाद भी सफेद मक्खी की संख्या प्रति पत्ता केवल 2.6 पर ही खड़ी और यही स्थिति हरे तेले और चूरड़े की है। इससे यह साफ हो रहा है कि मांसाहारी कीट ही सफेद मक्खी, हरे तेले और चूरड़े को नियंत्रित करने में कुदरती कीटनाशी का काम कर रहे हैं।
अंजू, विद्यार्थी
डेफोडिल्स पब्लिक स्कूल, निडाना

तीन भागों में बता होता है कीट  का शरीर 

आज तक उन्होंने केवल किताबों में ही कीड़ों के बारे में थोड़ा बहुत पढ़ा था लेकिन आज महिला पाठशाला में पहुंचकर उन्होंने कीड़ों के क्रियाकलापों और उनके जीवनचक्र के बारे में बारीकी से जानकारी हासिल की है। महिला किसानों ने कीटों की शारीरिक बनावट के बारे में जानकारी दी। आज पाठशाला में उन्हें पता चला है कि कीडों का शरीर सिर, धड़ और पेट तीन भागों में बटा हुआ होता है और कीड़े के एक जोड़ी पंख, तीन जोड़ी पैर तथा परिस्थितियों को भांपने के लिए सिर पर ऐंटिने नूमा एक जोड़ी संवेदी संस्करण होते हैं। जबकि मकड़ी का शरीर दो भागों में बटा हुआ होता है। मकड़ी को चार जोड़ी टांग होती हैं और यह पंख विहिन होती है। मकड़ी की खासियत यह है कि यह अपने शिकार के शरीर में पहले डंक के माध्यम से जहर घोलकर उसे बेहोश करती है और फिर उसके मास को घोलकर पीती है। इसके अलावा माइट अष्टपदि होती है। इसलिए महिलाएं इसे आम बोलचाल में मकडिय़ा जूं भी कहती हैं।
आशीष, विद्यार्थी
डेफोडिल्स पब्लिक स्कूल, निडाना


पाठशाला में बच्चों को कीटों के बारे में जानकारी देती मास्टर ट्रेनर सविता।

कपास के फूल की पत्तियों को खाती ब्रिस्टल बिटल (तेलन)।





1 टिप्पणी:

  1. भाई Narender Kundu, एक दम लाजवाब ब्लॉग है. बहुत ही बढ़िया और सही दिशा में लिखा गया है. बस इसको लिखते रहिये छोड़ना मत.

    जय हिन्द
    My contact email - dahiyas.hari@gmail.com

    जवाब देंहटाएं