रविवार, 3 अगस्त 2014

कमलेश के मजबूत इरादे व सीखने के जुनून ने परिवार को दी नई दिशा

आठवीं पास कमलेश कीट ज्ञान में बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों को दे रही है चुनौती

परिवार के विरोध के बाद भी नहीं मानी हार और साधारण ग्रहणी से बन गई कीटों की मास्टरनी

नरेंद्र कुंडू
जींद।
कहते हैं कि अगर मन में किसी काम को करने का जुनून पैदा हो जाए तो बड़ी से बड़ी बाधा भी उसका रास्ता नहीं रोक पाती। इस कहावत को सच साबित कर दिखाया है निडाना गांव की वीरांगना कमलेश ने। कमलेश चूल्हे-चौके के साथ-साथ खेती-बाड़ी के कामकाज में भी अपने पति जोगेंद्र का हाथ बंटवाती है। लगभग चार वर्ष पहले कमलेश को कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल से जहरमुक्त खेती की ऐसी प्रेरणा मिली की उसने परिवार की
कमलेश का फोटो।
मर्जी के खिलाफ कीट ज्ञान हासिल करने के लिए गांव के ही खेतों में चल रही महिला किसान खेत पाठशाला में भाग लेना शुरू कर दिया। पति और परिवार की मर्जी के खिलाफ कीट ज्ञान हासिल करने वाली कमलेश को लगभग दो वर्षों तक परिवार के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी और यह कमलेश की मेहनत का ही परिणाम है कि महज आठवीं पास कमलेश को आज सैंकड़ों कीटों के नाम कंठस्थ हैं। कमलेश फसल में मौजूद कीट को देखते ही उसके पूरे जीवन चक्र तथा इस कीट का फसल पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसके बारे में भी पूरी जानकारी रखती है। कीट ज्ञान के मामले में तो आठवीं पास कमलेश बड़े-बड़े कीट वैज्ञानिकों को भी चुनौती दे रही है। जिस कमलेश को कभी परिवार वाले कीट ज्ञान हासिल करने से रोकते थे आज परिवार के वही सदस्य खुद कीट ज्ञान की तालीम लेने के लिए कमलेश के साथ किसान खेत पाठशाला में जाते हैं। आज कमलेश का पति जोगेंद्र कीट ज्ञान के प्रति इतना आकर्षित हो चुका है कि पिछले दो सालों से उसने अपनी किसी भी फसल में कीटनाशक का एक छटांक भी प्रयोग नहीं किया है। कीट ज्ञान हासिल कर कमलेश तथा उसका पति जोगेंद्र अब खुद भी जहरमुक्त खेती कर रहे हैं तथा दूसरे किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं।

कमलेश का ग्रहणी से कीटों की मास्टरनी बनने तक का सफर


अपने पति जोगेंद्र को लेपटॉप पर कीटों के बारे में जानकारी देती कमलेश।
महिला पाठशाला के दौरान महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देती कमलेश।
कीट साक्षरता के अग्रदूत डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए निडाना गांव में वर्ष 2008 में पुरुष किसानों की पाठशाला की शुरूआत की गई थी। इसके बाद महिलाओं को भी इस मुहिम से जोडऩे के लिए वर्ष 2010 में निडाना गांव में ही एक महिला किसान खेत पाठशाला की भी शुरूआत की गई। पड़ोस के खेत में चल रही महिला किसान पाठशाला को देखकर कमलेश ने भी इस पाठशाला में जाना शुरू कर दिया। कमलेश पाठशाला से जो भी सीखती वह घर आकर परिवार के सदस्यों को समझाती और फसल में कीटनाशकों का छिड़काव नहीं करने का सुझाव देती लेकिन परिवार के सदस्य उसकी बात मानने की बजाये उल्टा उसे पाठशाला में जाने से रोकने के लिए दबाव डालने लगे। कमलेश ने बताया कि उसका पति जोगेंद्र फसल में काफी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करता था और उसे पाठशाला में जाने से भी रोकता था लेकिन कमलेश अपने पति जोगेंद्र को कहती कि पहले वह फसल में कीटनाशकों का छिड़काव बंद कर दे तो वह भी महिला किसान खेत पाठशाला में जाना छोड़ देगी। इसी बात को लेकर कई बार दोनों में झगड़ा भी हो जाता। लगभग दो साल तक यही क्रम जारी रहा। वर्ष 2012 में डॉ. सुरेंद्र दलाल ने जोगेंद्र के खेत में एक पुरुष किसान खेत पाठशाला की शुरूआत की और जोगेंद्र को भी इस पाठशाला में आने के लिए तैयार किया। जब जोगेंद्र ने खुद किसान खेत पाठशाला में जाकर कीटों के बारे में जानकारी हासिल की तो जोगेंद्र को भी अपनी पत्नी कमलेश की बातों पर यकीन होने लगा। इसके बाद जोगेंद्र ने फसल में कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया। अब 2014 में भी जोगेंद्र के खेत में एक नहीं बल्कि दो-दो पाठशालाएं चल रही हैं। एक पाठशाला पुरुषों की तो दूसरी पाठशाला महिलाओं की दोनों ही पाठशालाओं में दोनों पति-पत्नी भाग लेते हैं। इतना ही नहीं पाठशाला में किसानों के उठने-बैठने तथा पीने के पानी व अल्पाहार की व्यवस्था भी कमलेश व उसका पति जोगेंद्र खुद ही करते हैं। पाठशाला के सुचारू रूप से संचालन में दोनों का अहम योगदान है। यह कमलेश की दृढ़ इच्छा व मजबूत इरादों का ही परिणाम है कि कभी परिवार के जो लोग उसे पाठशाला में जाने से रोकते थे आज वही लोग उसके पीछे-पीछे पाठशाला में खुद ही जाने लगे हैं। पिछले दो वर्षों से कमलेश के पति जोगेंद्र ने फसल में एक छटांक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है।
कमलेश को सम्मानित करते तत्कालीन उपायुक्त डॉ. युद्धवीर ख्यालिया का फाइल फोटो।


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