रविवार, 10 अगस्त 2014

जमा किये गये अतिरिक्त भोजन को बाहर निकालने के लिए कीटों को बुलाते हैं पौधे

कीट ज्ञान की मुहिम के प्रति बढ़ रहा स्कूली विद्यार्थियों का रूझान

नरेंद्र कुंडू
जींद।
निडाना गांव में चल रही कीट ज्ञान की मुहिम के प्रति स्कूली बच्चों में भी रूझान लगातार बढ़ रहा है। इसी के चलते शनिवार को निडाना गांव में चलाई जा रही महिला किसान खेत पाठशाला में हर बार अलग-अलग स्कूलों से बच्चे कीट ज्ञान सीखने के लिए पहुंच रहे हैं। शनिवार को खरकरामजी गांव स्थित निराकार ज्योति विद्या निकेतन स्कूल के  विधार्थियों ने पाठशाला में पहुंचकर कीटों के जीवन चक्र व क्रियाकलापों के बारे में बारीकी से जानकारी हासिल की। इस अवसर पर स्कूल के डायरेक्टर जसमेर बूरा भी विशेष रूप से मौजूद रहे। कीटों के प्रति महिलाओं के इतने स्टीक ज्ञान को देखकर जसमेर बूरा ने महिलाओं की जमकर प्रशंसा की।
पाठशाला में भाग लेने के लिए पहुंची छात्राएं।
बुगडिय़ा खाप की कीटाचार्या कमलेश, प्रमीला, विजय, बिमला व सुदेश ने विद्यार्थियों को पौधों पर मौजूद शाकाहारी तथा मांसाहारी कीटों के जीवनच्रक व क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि कीट फसल में किसान को नुकसान या फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं बल्कि वह अपना जीवन यापन करने के लिए आते हैं। पौधे समय-समय पर अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न किस्म की सुगंध छोड़कर कीटों को अपनी सुरक्षा के लिए बुलाते हैं। पौधे के पास जब अतिरिक्त भोजन स्टॉक हो जाता है तो पौधे उस भोजन को बाहर निकालने के लिए कीटों को बुलाते हैं और इसी प्रक्रिया में कीटों को भी जीवन यापन करने का अवसर मिल जाता है। 
 पौधों पर कीटों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी लेती छात्राएं।

प्रकृति को चलाने में कीटों की अहम भूमिका

निराकार ज्योति विद्या निकेतन की छात्रा अंजलि, पूजा, ज्योति, अंजिका, खुशबू, खुशी, साहिल ने बताया कि अभी तक वह कीटों के  जीवन चक्र के बारे में केवल किताबों तक ही सीमित थे लेकिन महिला किसान खेत पाठशाला में उन्होंने इस ज्ञान को व्यवहारिक तौर पर भी देख लिया है। पाठशाला में पहुंचकर उन्होंने देखा कि किस तरह प्रकृति को चलाने में कीटों की अहम भूमिका होती है। छात्राओं ने बताया कि उन्होंने शाकाहारी कीटों को खाने वाले मांसाहारी कीट बीटल, हथजोड़ा,मकड़ी, खून चूसने वाले बुगड़े तथा मिलीबग के अंदर अंगीरा के बच्चे पलते देखे हैं। इसके साथ-साथ फसल में कहीं-कहीं चेपा भी नजर आया।

कीटनाशक प्रयोग करने वाले खेत में बड़ी शाकाहारी कीटों की संख्या

निडाना गांव के खेत में कीटनाशक रहित खेती तथा कीटनाशक वाली खेती पर चल रहे प्रयोग में एक नया आंकड़ा निकलकर आया है। खेत के मालिक जोगेंद्र ने बताया कि उसके खेत में आधा-आधा एकड़ में कपास पर शोध किया जा रहा है। आधा एकड़ में कीट ज्ञान की मुहिम से जुड़े किसानों की पद्धति के अनुसार खेती की जा रही, आधा एकड़ में आईपीएम की पद्धति के अनुसार खेती की जा रही है तथा आधा एकड़ में एक सामान्य किसान की पद्धति से खेती की जा रही है। किसान जोगेंद्र ने बताया कि सामान्य किसान वाली पद्धति वाले आधा एकड़ में उसने दो दिन पहले ही कीटनाशक का प्रयोग किया था। इससे उस खेत में दूसरे खेतों की अपेक्षा शाकाहारी कीटों की संख्या बढ़ी है।
सफेद मक्खी     हरा तेला    चूरड़ा        पद्धति का नाम
2.1                        0.4        1.4         कीटनाशक के प्रयोग के बाद
1.6                       0.6        1.2          कीटनाशक रहित पद्धति
1.8                       0.7        1.5          आईपीएम की पद्धति        

दूसरे जिले के किसानों में भी बढ़ा कीट ज्ञान के प्रति रुझान

जींद जिले में चल रही कीटनाशक रहित खेती की मुहिम के प्रति अब दूसरे जिलों के किसानों का भी रूझान बढ़ रहा है। शनिवार को निडाना गांव में चल रही पाठशाला में हिसार जिले के सोरखी गांव से पहुंचे प्रगतिशील किसान देवेंद्र व संदीप ने बताया कि वह भी समाचार पत्रों में इस मुहिम के बारे में जानकारी ले रहे हैं और उसी से इसके प्रति उनका रुझान बढ़ा है। इसलिए वह भी कीट ज्ञान लेने के लिए यहां पहुंचे हैं। देवेंद्र ने बताया कि उसने बीटैक की डिग्री की हुई है लेकिन नौकरी से ज्यादा उसका खेती के प्रति रूझान है। देवेंद्र व संदीप ने बताया कि उसके गांव में फसल में कीटनाशकों को बेइंताह प्रयोग किया जा रहा है। इसलिए वह भी अपने गांव के किसानों को जहरमुक्त खेती के लिए प्रेरित करने के लिए अपने गांव में भी इस मुहिम को चलाना चाहते हैं।

फसल में देखे गए कीटों का आंकड़ा दर्ज करवाती स्कली छात्रा।





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